सारा शहर परेशान ही कि बिन्नी, बिन्नी क्यू है...
सारा शहर दुबला जा रहा है कि बिन्नी, बिन्नी क्यू है
जहा महात्मा गांधी रोड पर बिकती शराब है...
वहा सिर्फ मेरी बिन्नी कि वजहसे इस शहर का आसमा खराब है?
बिन्नी जैसी भी है, बिन्नी है, वो मेरी है!
उसमे कोई खोट नाही, वो पूरी है!
अरे जिस शहर को इन्सान होने की तमीज नही
उस शहर को शिकायत है बिन्नी के बारे मे?
अब मै शहर की उम्मीदोन के हिसाब से बिन्नी को काट छाट कर छोटा कैसे कर दू?
बिन्नी आखिर मेरी बेटी है, कोई कमीज नही...
कमलेश पांडे I think
थोडा सा रुमानी हो जाये...1990
No comments:
Post a Comment